पुराने जमाने के अपेक्षाकृत आरामदायक और शांत जीवन जीने वालों के लिए यह खबर हवा के एक ताजे झोंके के समान है। शोध करने वालों ने आखिरकार माना है कि अवसाद से बचने के लिए फोन कॉल करने और ईमेल भेजने से कहीं बेहतर है कि दोस्तों या परिवार के साथ आमने-सामने की मुलाकात की जाए। Also Read - भारत में हो सकता है चाइनीज साइबर अटैक का हमला, Email खोलते समय बरतें सतर्कता
ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि जो लोग अपने परिवार और दोस्तों से नियमित रूप से मिलते रहते हैं उनमें उन लोगों के मुकाबले अवसाद के लक्षण कम पाए गए जो लोगों से फोन या ई-मेल के जरिए बात करते हैं। Also Read - सावधान! ब्लैकमेलिंग के लिए प्रति घंटे 30 हजार मेल भेज रहा मेलवेयर
अध्ययन में यह भी पता चला कि लोगों से आमने-सामने मिलने से होने वाले फायदे काफी बाद तक अपना असर दिखाते हैं। Also Read - डेली 40% Email को अनदेखा करते हैं ज्यादातर एंप्लॉयीज
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मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर एलन टिओ ने कहा, “यह लोगों को अवसाद से बचाने के लिए अपने खास रिश्तेदारों और दोस्तों से संवाद के तौर तरीके के बारे में मिली जानकारी का पहला रूप है।”
टीम ने शोध में पाया कि सामाजिक रूप से मिलने जुलने के सभी तरीके एक समान असर नहीं छोड़ते।
टिओ ने कहा, “परिवार या दोस्तों के साथ फोन काल या डिजिटल संवाद का अवसाद से बचाने में उतना असर नहीं है जितना प्रत्यक्ष मिलने-जुलने में है।”
युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के लांगीट्यूडनल हेल्थ एंड रिटायरमेंट स्टडी में टिओ और उनके सहयोगियों ने 50 और इससे अधिक उम्र के 11000 व्यस्कों का अध्ययन और परीक्षण किया।
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अध्ययन करने वालों ने फोन और ई-मेल से लोगों से संपर्क रखने वालों पर ध्यान केंद्रित किया। दो साल तक देखा कि ये कितने अंतराल पर इन जरियों से संवाद करते हैं। उन्होंने पाया कि लोगों से आमने-सामने न मिलने वाले इन लोगों के दो साल बाद अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो गई है।
अध्ययन में पाया गया कि हफ्ते में कम से कम तीन बार परिवार और दोस्तों से प्रत्यक्ष मिलने वालों में दो साल बाद अवसाद का शिकार होने की संभावना न्यूनतम स्तर पर होती है। जो लोग प्रत्यक्ष तो मिलते हैं लेकिन कम मिलते हैं उनमें इसकी संभावना बढ़ जाती है।
यह अध्ययन अमेरिकन जेरिएट्रिक्स सोसाइटी के आनलाइन जरनल में प्रकाशित हुआ है।