रिजर्व बैंक ने दिल्ली उच्च न्यायालय से आज कहा कि वह टाटा संस के समझौते के कथित उल्लंघन को लेकर जापान की दूरसंचार कंपनी एनटीटी डोकोमो को 1.17 अरब डालर के भुगतान के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत के निर्णय पर एक नजर और डालना चाहता है। हालांकि न्यायाधीश एस मुरलीधर ने रिजर्व बैंक के रूख से सहमत नहीं हुए और कहा कि इसे फिर से देखने का कोई मतलब नहीं है। Also Read - इस साल के आखिर तक मिलने लगेगा e-Passport! जानें इसके फायदे और अन्य डिटेल
Also Read - RBI ने UPI यूजर्स को दी खुशखबरी, अब क्रेडिट कार्ड की मदद से भी होगा UPI पेमेंटन्यायाधीश ने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक पहले ही दो बार इस पर दो बार गौर कर चुका है। यह बेहतर होगा कि वह अदालत को बताये कि क्या कोई सांविधिक प्रावधान या नियमन है जो फैसले के तहत विदेश में धन हस्तांतरण पर रोक लगाता है।’’ अदालत ने यह भी कहा कि प्रत्येक निजी फैसले में रिजर्व बैंक कदम नहीं उठा सकता और केंद्रीय बैंक को उस नियम, नियमन या परिपत्र दिखाने के लिये कल तक का समय दिया जो निर्णय के क्रियान्वयन के रास्ते में आता हो। Also Read - Terra क्रैश के बाद RBI गवर्नर ने कही ये बड़ी बात, Crypto की असली कीमत को बताया शून्य
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रिजर्व बैंक की तरफ से मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी ने अदालत से कहा कि बैंक अगर डोकोमो के पक्ष में दिये गये निर्णय को फिर से देख सकता है तो वह मामले में हस्तक्षेप के अपने आवेदन पर जोर नहीं देगा।
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इस दलील का डोकोमो और टाटा संस की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और डी खंबाता ने विरोध किया। दोनों कंपनियों के वकीलों ने कहा कि रिजर्व बैंक अनंत काल तक मामले को फिर से देखने की बात नहीं कह सकता। अदालत ने इस पर सहमति जतायी और कहा कि रिजर्व बैंक एक ही मुद्दे पर बार-बार एक ही चीज नहीं कह सकता।
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